LUSTUS/लस्ट्स INVOCATION


 LUSTUS, THE PRINCE OF DARKNESS 
BY  Dr. JERNAIL S AANAND 

TRANSCREATED BY RAJNI CHHABRA




 LUSTUS/लस्ट्स 


आह्वान

हे ! सरस्वती, मैं एक बार पुनः आपके पवित्र मंदिर में आया हूं /

मेरी लेखनी को नई ऊर्जा  दो 

मानव के पतन के कारण खोजने के लिए 

और लस्ट्स के उत्थान के 

बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को 

आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से 

और किसने विमुख  किया मानव को 

दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया 

लस्ट्स के  दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की 

शरण में जाने के लिए। 


लस्ट्स जो इच्छुक था मानव के रवैये को देव के समक्ष उचित ठहराने का 

खिलवाढ़ कर  रहा था मानवीय मन की दुर्बलता के साथ 

सम्मान, स्वतंत्रता और इच्छा शक्ति की आड़ में 

और उसकी उच्च श्रेणी की  बौद्धिक वाकपटुता ने  

कैद कर  दी उनकी कल्पना शक्ति 

ताकि शीघ्र ही उन्हें यह आभास होने लगा 

यदि वे चाहते हैं कि मन-वांछित ही घटे 

केवल लस्टस और उसका राज्य ही है 

जो उन्हें बेलग़ाम आज़ादी दे सकते हैं/


प्रभु और उसकी दिनों-दिन क्षीण होती जा रही सेना

अपने बलपूर्वक रवैये के साथ जारी रखे हुए थी 

मृतकों की उपासना

और उनके अनुयायियों के लिए निर्धारित करती 

आचरण की एक सारणी 

जिससे आमआदमी साधारण खुशियों से भी वंचित हो जाता 


इस तरह, उन्होंने मुख मोड़ लिए मंदिरों से 

और भीड़ बढ़ ने लगी मदिरालयों, सिनेमाघरों 

रेस्त्रां और क्लुबों में 

लोग,जो मुक्ति चाहते थे 

कमरतोड़ काम के बोझ से 

एकत्रित होते खेल खेलने,  महिलाओं से मिलने के लिए 

और मदिरा पान व् मौज़ मस्ती  के लिए 

परन्तु, जैसे जैसे सामूहिक अर्थव्यवस्था की पकड़ 

बढ़ने लगी, राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था पर 

अधिकाधिक युवा धकेल दिए गए नौकरियों की ओर 

जहाँ न तो उन्हें खुशी मिलती, न आशा की कोई किरण 

केवल आकांक्षा परोसी जाते उन्हें 

मात्र स्व -केंद्रित अतिरंजित जुनून 

रुग्ण मानसिकता और निरंतर दर्द से युक्त /

इस सशक्त लोगों की सेना 

जो दानव के नाम पर जी रहे थे 

दिखने में धार्मिक लगते थे 

और प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित 

मंदिरों में अर्चना करते 

धार्मिक स्थलों पे सजदे में सिर झुकाते 

स्पष्ट रूप से अपनी  दमित भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए 

फिर भी, उनकी निष्ठा तो शैतान के प्रति ही थी 

मानवीय इच्छाओं की पूर्ण स्वतंत्रता में यकीन के साथ /


हे, सरस्वती! मुझे सामर्थ्य दो वर्णन करने की 

कैसे घटित होता है यह देवत्व को लूटने का काम 

कैसे  यह दुष्ट लोग इस संसार को बदल देते हैं 

आध्पित्य हो जाता हैं अन्धकार के साम्रज्य का, 


और कैसे दैवीय साम्राज्य के दुर्ग एक के बाद  एक 

लस्ट्स के  कोप के आगे  धराशायी होने लगते है, 

और किस तरह अंततः प्रभु प्रयास करता है 

अपने खोये स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए। 



मुझे शक्तिदान दो इस अधार्मिक युद्ध के 

अनपेक्षित विवरण करने हेतु 

जोकि लस्ट्स और उसके समूह ने 

प्रभु पर थोपा 

जिसमें कितने ही फ़रिश्ते घातक रूप से घायल हुए 

और, अंत में दुर्गा का आह्वान किया गया 

दानवों  के नरसंहार के लिए 

 अराजकता के अंत के लिए 

और ईश्वरीय व्यवस्था के पुनर्स्थापन के लिए 



मूल रचना: डॉ. जे, एस. आनंद  

अनुवाद : रजनी छाबड़ा 




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