An extract of English Transversion of Doosri, teesari............satanvee aurat ka ghar

  इस खुशबू का नाम घर ही होना चाहिए

मीलों फैले उस पार्क के एक कोने में लेटे उन दोनों पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ जैसे आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ झुकाए खड़े हैं। यह अतीत है जो पीले सूखे पत्ते बन निशिता के नीचे बिछा हुआ है और हल्की दूरी बनाए, हरी घास पर लेटा अभिजित, भविष्य जैसा लग रहा है। चार घंटों की बातचीत के बाद अन्दर पिघले, निरन्तर बहते उस अहसास की शक्ल कुछ-कुछ नज़र आने लगी है जिसे घर के अहसास ही खोज कहते हैं... वर्तमान का यह क्षण बहुत वायवी है। उसे पकड़ना पड़ेगा... ताकि घर के उस अहसास को अमली जामा पहनाया जा सके। आखिर निशिता ने कह ही दिया, मैं एक घर बसाना चाहती हूँ।

This aroma should be named as 'Home' only

In that park stretching till miles, on both of them, tall trees were standing as if bending hands in the gesture of Blessings. This is past that is lying like withered pale leaves beneath Nishita, and maintaining a little distance, lying on lush green grass, Abhijeet seems to be like present. After conversation of four hours, that sensation melting , flowing continually within, started assuming a shape, that is termed as perception of home...This present moment seems to be on wings. It will have to be captured, so that sensation of home can be transformed into reality. Ultimately, Nishita revealed her heart," I want to have a home."

मेरा दिल हाज़िर है,’ हथेली दिल पर रख नाटकीय अंदाज में बैठते हुए अभि बोला।

" I offer my heart to you,", placing his hand on heart,  Abhi said in a dramatic style.


पर मेरे घर का कोई पता भी होना चाहिए,’ निशि ने आँखें तरेरीं, वह ठोस ज़मीन पर खड़ा, देखने-दिखाने लायक, हकीकत का बना होना चाहिए।

:" But, my house should bear an address", Nishi said glaringly, " It should be erected on solid ground, worthy of presentation, made in reality."

ओ, तो मेरा पता तो मौजूद है। डी.के. कम्पनी का एम्प्लाई नं. 23234। बाकी मैं हकीकत में उठकर खड़ा हो जाता हूँ।

O! My address exists. Employee Number 23234 of D. K. Company. Rest, I stand up and stand straight , in reality."

अभिजित सचमुच उठकर खड़ा हो गया। निशिता को हँसी नहीं आई पर सायास मुस्कान लाकर बोली, मैं खुले आसमान की छत और पार्क की ठोस जमीन पर हवा की दीवारों वाला सपनों का घर नहीं, ईंट-गारे-कंक्रीट वाला भावनाओं से भरा सुन्दर-सा घर चाहती हूँ जहाँ सपने बसें...

Abhijeet, really stood up. It did not made Nishita laugh, but effortfully smiling, he said, "I am not referring to ceiling of open sky and of walls of wind raised on solid ground of park; I have desire for a beautiful house, constructed with bricks, lime and concrete, where dreams can dwell....


पहले दिल में घर बसाओ, फिर ईंटों वाला घर बनाओ,’ अभि ने निशि को बाँहों में समेटते हुए कहा। उन बाँहों के घेरे में उसी क्षण एक घर रचने-बसने को छटपटाने लगा।

" Firstly create a home in heart, then make a house of bricks,"Abhi said to Nishi, embracing her. Encircled in his arms, that very moment, a home started wriggling for settling in it.

रचना ने सुना तो सिर पीट लिया।

Rachana banged her head on listening this.

तीसरी मुलाकात में शादी का फैसलानिशि, तू पागल तो नहीं हो गई है?’

"Decision of getting married, in third meeting! Nishi, have you gone crazy? "

पागल होती तो अब तक मुझ दीये के चारों ओर सालों से चक्कर काट रहे पतंगों में से किसी को चुन न चुकी होती?’

" Had I been crazy, I would have certainly selected one of those moths, circling , since year, around me, the earthen lamp."

रचना फिर भी चुप न लगा सकी।

Rachana could not hold her tongue, even then.

बोली, कविता लिखती है तो ज़िंदगी को कविता ही न समझ बैठना। घर एक सपना हो सकता है, पर सपना घर नहीं हो सकता!’

Said, " You compose poetry, but don't mistake life for poetry. Home can be a dream, but a dream can not be home."

निशि सुनकर हँसती रही।

Nishi kept on giggling, listening to this.

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